नित्योपासना - मंगलवार - सायं स्मरण
ॐ नम: शिवाय
परमपूज्य आई श्रीकलावतीदेवी |
श्री गणपते | विघ्ननाशना|
मंगलमूरुते | मूषकवाहना |१|
तिमिर नाशिसी | निजज्ञान देउनि|
रक्षिसी सदा | सुभक्तांलागुनि |२|
खड्ग दे मला | प्रेमरूपी हे|
मारिन षड़रिपु | दुष्ट दैत्य हे |३|
बालकापरी | जवळी घे मज|
ईश जगाचा तू | मी तव पदरज |४|
मनोहर तुझी | मूर्ति पहावया|
लागी दिव्य दुष्टि | देई मोरया |५|
पुरवि हेतुला | करुनि करुणा|
रमवी भजनी | कलिमलदहना |६|
त्रिविधतापांची करावया झाडणी | भक्तांलागोनी पावसि निर्वाणी ॥१॥
आईचा जोगवा, जोगवा मागेन | द्वैत सांडुनि माळ मी घालीन |
हाती बोधाचा झेंडा मी झेलीन | देहरहित वारीसी जाईन ॥धृ०॥
नवविध भक्तीचे करुनि नवरात्र | करुनि पोटी मागेन ज्ञानपुत्र |
जाणुनि सदभाव अंतरीचा मित्र | दुर्धर संसार सोडीन कुपात्र ॥२॥
पूर्ण बोधाची घेईन परडी | आशातृष्णेची फोडीन नरडी |
मनविकार करीन कुरवंडी | अमृतरसाची भरीन मी दुरडी ॥३॥
आता साजणी झाले मी निःसंग | विकल्पनवर्याचा तोडियेला संग |
काम क्रोध हे धाडियेले मांग | झाला मोकळा मारग सुरंग ॥४॥
आईचा जोगवा मागुनि ठेविला | जाउनि महाद्वारी नवस म्या फेडिला |
एकाजनार्दनी एकपणे देखिला | जन्ममरणाचा फेरा चुकविला ॥५॥
पाहता पाहता जाईल सर्वहि ॥धृ०॥
नाग घालि मिठी चंदनासी | भ्रमर धावे कमलापाशी |
तेवी गुरुभजनी रत होई ॥१॥
मुंगीचा असे सहज स्वभाव | गुळासाठी घेते धाव |
आणिक तुज म्या सांगू काई ॥२॥
आवडीने सेवी मक्षिका मध | भ्रमर सुवासा होई लुब्ध |
तेवी अनन्य गुरुचे पायी ॥३॥
कीटक धरिता भ्रमराध्यास | सत्वर पावे भ्रमरपणास |
पात्र होसी गुरुकृपेस | नरजन्माचे सार्थक होई ॥५॥
गुरुपद मनुजा तीर्थचि काशी | गुरुपदविमुखा गति नसेची|
गुरुवाचुनि जगी दैवत नाही ॥६॥
कलिमलदहनकृपामृत सेवुनि | घोर भवांबुधि पार तरोनी |
ब्रह्मानंद डुलत राही ॥७॥
सब चीज सब जगामो | ईश्वर समा रहा है ॥धृ०॥
प्रभुने जबी बिचारा | जगका हुवा पसारा |
चौदेभुवन नियारा | मनसे बना रहा है ॥१॥
कही नर बना है नारी | कही देव दैत्य भारी |
पशुपक्षीरुपधारी | बन बनके आ रहा है ॥२॥
भूमि वही अगन है | सूरज वही गगन है |
पानी वही पवन है | निर्गुण दुणा रहा है ॥३॥
तज भेदभाव मनमे | बनमे वही है तनमे |
ब्रह्मानंद जो स्वपनमे | रचना रचा रहा है ॥४॥
अखिल पसारा विफल असे हा | नकळत पावेल भंग ॥१॥
आसनी शयनी भोजनी गमनी | गुरुभजनी रहा दंग ॥२॥
भाव भक्ति दृढतर होता | गुरु सांगे अंतरंग ॥३॥
गुरुबोधाच्या श्रवणमनने | त्यागी अभिमानसंग ॥४॥
कलिमलदहनकृपामृत सेवुनि | आत्मस्वरुपी रंगिरंग ॥५॥
काया वाचा मन अर्पिता गुरुपदी | गुरुने ग बाई बोध केला की ॥१॥
कोण मी कैचा आलो कशाला | जाणार कोठे विचार कर की ॥२॥
देह मी नव्हे ऐसे कळता ग बाई | देहसंबंधियांचा विचार विरला की ॥३॥
बाल तरुण वृद्ध नरनारी नव्हे मी | नित्य सत्य मुक्त आत्मा असे की ॥४॥
गुरुसिद्धकृपे कलिमल हरता | निजभजनानंदी रमली की ॥५॥
परनारीकू षंढ बना है | परनिंदाकू बहिरा |
परधन देखत अंधा हुवा | जब आपका जग सारा ॥१॥
सदा रहत उदासी निंदा | स्तुति न जाने कोई |
ए धेनु ए बाघ न जाने | सब आत्मा है भाई ॥२॥
भेद नही अभेद हुवा मन | राम भया जग सारा |
कहत कबीर सुन भाई साधु | जगमो रहकर न्यारा ॥३॥
भजन -
बेळगांव शहरी अनगोळमाळी श्रीहरिमंदिरात
८) गुरुवरा तुज नमस्कारा | धीरा, उदारा, सुंदरा, श्रीधरा ॥धृ०॥
जननमरणभय हरण करोनि | प्रेमामृते तृप्त केले स्वामी
ईशा, जगदीशा, परमेशा, रमेशा ॥१॥
अनंत रुपी अनंत नामी | नटलासी तू सदगुरुस्वामी |
कलावंता, भगवंता, श्रीकांता, अनंता ॥२॥
आरती ओवाळीतो करुणासागरे, माते ॥धृ०॥
नवरत्नांकित सिंहासनी बैसुनि सदगुरु सुंदरे, माते |
षडविकार शमवुनि पाप ताप हरे, माते ॥१॥
सुकुमार पदावरी पुष्प सुवासिक पहाता चित्त विरे, माते |
सुहास्यवदन पहाता, भवदुःख विसरे, माते ॥२॥
तव बोधामृतपाने भेदाभेद काही नुरे, माते |
अगम्य महिमा तुझा, सुरवरां अगोचरे, माते ॥३॥
तव नामामृत सेवन करिता अतृप्ति सरे, माते |
तव प्रेमामृत मिळता, देहभान विसरे, माते ॥४॥
भक्तिविण तव लाघव कोणा न कळे सदगुणमंदिरे, माते |
कलिमलदहन करोनि, सुखविसि अभयकरे, माते ॥५॥
सोमवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु ...
सोमवार - सायंकाल स्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
मंगलवार - प्रातः स्मरण - उठा उठा हो वेगेसी ...
बुधवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु गणपती विद्यादयासागर ...
बुधवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई । मजला ठाव द्यावा पायी ...
गुरुवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति कर ...
गुरुवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
शुक्रवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु गणपती विद्यादयासागरा ...
शुक्रवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
शनिवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु गणपती विद्यादयासागरा ...
शनिवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
रविवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु गणपती विद्यादयासागरा ...
रविवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
मंगलमूरुते | मूषकवाहना |१|
तिमिर नाशिसी | निजज्ञान देउनि|
रक्षिसी सदा | सुभक्तांलागुनि |२|
खड्ग दे मला | प्रेमरूपी हे|
मारिन षड़रिपु | दुष्ट दैत्य हे |३|
बालकापरी | जवळी घे मज|
ईश जगाचा तू | मी तव पदरज |४|
मनोहर तुझी | मूर्ति पहावया|
लागी दिव्य दुष्टि | देई मोरया |५|
पुरवि हेतुला | करुनि करुणा|
रमवी भजनी | कलिमलदहना |६|
भजन - पार्वतीच्या नंदना मोरया, गजानना गजवदना ॥
२) अनादि निर्गुण प्रगटली भवानी | मोहमहिषासुरमर्दना लागोनी |त्रिविधतापांची करावया झाडणी | भक्तांलागोनी पावसि निर्वाणी ॥१॥
आईचा जोगवा, जोगवा मागेन | द्वैत सांडुनि माळ मी घालीन |
हाती बोधाचा झेंडा मी झेलीन | देहरहित वारीसी जाईन ॥धृ०॥
नवविध भक्तीचे करुनि नवरात्र | करुनि पोटी मागेन ज्ञानपुत्र |
जाणुनि सदभाव अंतरीचा मित्र | दुर्धर संसार सोडीन कुपात्र ॥२॥
पूर्ण बोधाची घेईन परडी | आशातृष्णेची फोडीन नरडी |
मनविकार करीन कुरवंडी | अमृतरसाची भरीन मी दुरडी ॥३॥
आता साजणी झाले मी निःसंग | विकल्पनवर्याचा तोडियेला संग |
काम क्रोध हे धाडियेले मांग | झाला मोकळा मारग सुरंग ॥४॥
आईचा जोगवा मागुनि ठेविला | जाउनि महाद्वारी नवस म्या फेडिला |
एकाजनार्दनी एकपणे देखिला | जन्ममरणाचा फेरा चुकविला ॥५॥
भजन - आनंदे गुरुमाय | निजानंदे गुरुमाय | सच्चिदानंदे गुरुमाय | पूर्णानंदे गुरुमाय ॥
३) सदगुरुपदी शरण जाई | नीरलिखित संसारचित्र हे |पाहता पाहता जाईल सर्वहि ॥धृ०॥
नाग घालि मिठी चंदनासी | भ्रमर धावे कमलापाशी |
तेवी गुरुभजनी रत होई ॥१॥
मुंगीचा असे सहज स्वभाव | गुळासाठी घेते धाव |
आणिक तुज म्या सांगू काई ॥२॥
आवडीने सेवी मक्षिका मध | भ्रमर सुवासा होई लुब्ध |
तेवी अनन्य गुरुचे पायी ॥३॥
कीटक धरिता भ्रमराध्यास | सत्वर पावे भ्रमरपणास |
पात्र होसी गुरुकृपेस | नरजन्माचे सार्थक होई ॥५॥
गुरुपद मनुजा तीर्थचि काशी | गुरुपदविमुखा गति नसेची|
गुरुवाचुनि जगी दैवत नाही ॥६॥
कलिमलदहनकृपामृत सेवुनि | घोर भवांबुधि पार तरोनी |
ब्रह्मानंद डुलत राही ॥७॥
भजन - शांत किती हा सदगुरुमूर्ति | पाहता मावळे द्वैतभ्रांति ॥
४) नजरोंसे देख प्यारे | यह क्या दिखा रहा है |सब चीज सब जगामो | ईश्वर समा रहा है ॥धृ०॥
प्रभुने जबी बिचारा | जगका हुवा पसारा |
चौदेभुवन नियारा | मनसे बना रहा है ॥१॥
कही नर बना है नारी | कही देव दैत्य भारी |
पशुपक्षीरुपधारी | बन बनके आ रहा है ॥२॥
भूमि वही अगन है | सूरज वही गगन है |
पानी वही पवन है | निर्गुण दुणा रहा है ॥३॥
तज भेदभाव मनमे | बनमे वही है तनमे |
ब्रह्मानंद जो स्वपनमे | रचना रचा रहा है ॥४॥
भजन - सीताराम जय जय राम | हरे राम, राम, राम, राम ॥
५) धरी गुरुचरण अभंग, मना तू ॥धृ०॥अखिल पसारा विफल असे हा | नकळत पावेल भंग ॥१॥
आसनी शयनी भोजनी गमनी | गुरुभजनी रहा दंग ॥२॥
भाव भक्ति दृढतर होता | गुरु सांगे अंतरंग ॥३॥
गुरुबोधाच्या श्रवणमनने | त्यागी अभिमानसंग ॥४॥
कलिमलदहनकृपामृत सेवुनि | आत्मस्वरुपी रंगिरंग ॥५॥
भजन - उपेंद्रा भक्तचकोरचंद्रा | सत्वरि धाव बा ॥
६) होईन मी सुखी होईन मी सुखी | म्हणता ग बाई झाले मी सुखी ॥धृ०॥काया वाचा मन अर्पिता गुरुपदी | गुरुने ग बाई बोध केला की ॥१॥
कोण मी कैचा आलो कशाला | जाणार कोठे विचार कर की ॥२॥
देह मी नव्हे ऐसे कळता ग बाई | देहसंबंधियांचा विचार विरला की ॥३॥
बाल तरुण वृद्ध नरनारी नव्हे मी | नित्य सत्य मुक्त आत्मा असे की ॥४॥
गुरुसिद्धकृपे कलिमल हरता | निजभजनानंदी रमली की ॥५॥
भजन - ॐ नमःशिवाय, तरणोपाय, सुलभ उपाय, तारकमंत्र गुरुंचा ॥
७) वोही राम पछानो जी | मेरा कहेना मानो जी ॥धृ०॥परनारीकू षंढ बना है | परनिंदाकू बहिरा |
परधन देखत अंधा हुवा | जब आपका जग सारा ॥१॥
सदा रहत उदासी निंदा | स्तुति न जाने कोई |
ए धेनु ए बाघ न जाने | सब आत्मा है भाई ॥२॥
भेद नही अभेद हुवा मन | राम भया जग सारा |
कहत कबीर सुन भाई साधु | जगमो रहकर न्यारा ॥३॥
भजन -
बेळगांव शहरी अनगोळमाळी श्रीहरिमंदिरात
तेथे हरि प्रत्यक्ष नांदतो काय सांगू मात ॥१॥
हरिनामाचा गजर होतो तेथे दिनरात ।
बंधुभगिनी सर्व मिळोनि अमोघ लाभ घेत ॥२॥
आमुचा हरि कृपादृष्टीने आम्हाकडे पहात ।
पाप ताप दुःख संकटे हरिला भिउनि पळत ॥३॥
८) गुरुवरा तुज नमस्कारा | धीरा, उदारा, सुंदरा, श्रीधरा ॥धृ०॥जननमरणभय हरण करोनि | प्रेमामृते तृप्त केले स्वामी
ईशा, जगदीशा, परमेशा, रमेशा ॥१॥
अनंत रुपी अनंत नामी | नटलासी तू सदगुरुस्वामी |
कलावंता, भगवंता, श्रीकांता, अनंता ॥२॥
भजन - सदगुरुमाय दाखवि पाय | तुजविण गमेना करु मी काय ॥
आरती
१) जय जय जय ॐ कारे, माते |आरती ओवाळीतो करुणासागरे, माते ॥धृ०॥
नवरत्नांकित सिंहासनी बैसुनि सदगुरु सुंदरे, माते |
षडविकार शमवुनि पाप ताप हरे, माते ॥१॥
सुकुमार पदावरी पुष्प सुवासिक पहाता चित्त विरे, माते |
सुहास्यवदन पहाता, भवदुःख विसरे, माते ॥२॥
तव बोधामृतपाने भेदाभेद काही नुरे, माते |
अगम्य महिमा तुझा, सुरवरां अगोचरे, माते ॥३॥
तव नामामृत सेवन करिता अतृप्ति सरे, माते |
तव प्रेमामृत मिळता, देहभान विसरे, माते ॥४॥
भक्तिविण तव लाघव कोणा न कळे सदगुणमंदिरे, माते |
कलिमलदहन करोनि, सुखविसि अभयकरे, माते ॥५॥
सोमवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु ...
सोमवार - सायंकाल स्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
मंगलवार - प्रातः स्मरण - उठा उठा हो वेगेसी ...
बुधवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु गणपती विद्यादयासागर ...
बुधवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई । मजला ठाव द्यावा पायी ...
गुरुवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति कर ...
गुरुवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
शुक्रवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु गणपती विद्यादयासागरा ...
शुक्रवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
शनिवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु गणपती विद्यादयासागरा ...
शनिवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
रविवार - प्रातः स्मरण - प्रारंभी विनंति करु गणपती विद्यादयासागरा ...
रविवार - सायंस्मरण - सदगुरुनाथे माझे आई ...
Comments
Post a Comment